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बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा भूचाल लाते हुए इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराते हुए फांसी की सज़ा सुनाई है। यह फैसला 2024 में हुए आरक्षण-विरोधी छात्र आंदोलन के दौरान हुई हिंसा, मौतों और दमन से जुड़े मामलों पर सुनाया गया।

कोर्ट ने क्या कहा?

ICT के अनुसार, जांच के दौरान मिले साक्ष्यों, पीड़ितों के बयान और घटनाओं की वीडियो-फोटोग्राफिक रिपोर्ट ने यह स्थापित किया कि—

  • आंदोलन को रोकने के लिए अत्यधिक बल प्रयोग का आदेश दिया गया,

  • प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई की गई,

  • और कई लोगों की मौतों के लिए शीर्ष नेतृत्व सीधे तौर पर जिम्मेदार पाया गया।

ट्रिब्यूनल ने निर्णय में कहा कि “अपराध संगठित, योजनाबद्ध और अमानवीय थे।”

इसी मामले में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को भी फांसी की सज़ा दी गई है। वहीं, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को एक केस में सरकारी गवाह मानते हुए राहत दी गई, जबकि दूसरे मामले में उन्हें 5 वर्ष की सज़ा सुनाई गई।

पीड़ितों के लिए मुआवज़े का निर्देश

अदालत ने कहा कि आंदोलन के दौरान जिन छात्रों और नागरिकों की मौत हुई या जो घायल हुए, उनके परिवारों को सरकार द्वारा मुआवज़ा दिया जाए।

राजनीतिक हलचल तेज

शेख हसीना इस समय भारत में निर्वासन में हैं और उन्होंने इस फैसले को राजनीतिक प्रतिशोध बताया है। उनका कहना है कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का अवसर नहीं मिला और यह फैसला सत्ता परिवर्तन के बाद नए शासन की “राजनीतिक कार्रवाई” है।

क्या आगे अपील हो सकती है?

कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, यह फैसला बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में अंतिम निर्णय आने में समय लग सकता है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय संगठन इस सज़ा पर लगातार प्रतिक्रिया दे रहे हैं और मृत्युदंड को लेकर चिंता जता रहे हैं।

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