इकलौते चैती दुर्गा मंदिर चौपियाबागी में प्रत्येक वर्ष चार गांव के ग्रामीणों द्वारा किया जाता है चैती नवरात्र का आयोजन

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न्यूज स्केल संवाददाता, महेश प्रजापति/अमित सिंह
इटखोरी(चतरा)। सनातन धर्मावलंबियों के लिए चैत मास का विशेष महत्व है। इस मास में माता दुर्गा की पूजा बड़ी विधि विधान से किया जाता है। चतरा जिले के इटखोरी प्रखंड मुख्यतः माता भद्रकाली मंदिर के लिए जानी जाती है। इटखोरी से चौपारण जाने वाले रास्ते मे धुना पंचायत स्थित चौपियाबागी में जिले भर का इकलौते चौती दुर्गा मंदिर भी स्थित है। यहां प्रत्येक वर्ष चार गांव के ग्रामीणों द्वारा बड़े उत्साह से चैती नवरात्र का आयोजन धूम धाम से करते हैं। यहां मंगलवार को वासंतिक नवरात्र को लेकर कलश स्थापन पुरोहित द्वारा किया गया। इटखोरी मुख्य बाजार से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चैती दुर्गा मंदिर प्रखंड का ही नही जिले का इकलौता मंदिर है। जहां माता अष्टभुजी शेर पर सवार दुर्गा समेत भगवान गणेश ,कार्तिकेय महालक्ष्मी एवं माता सरस्वती समेत बजरंगबली की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। ग्रामीणों के अनुसार वर्ष 1964 से यहां माता की पूजा लगातार की जा रही है। ग्रामीणों ने बताया कि वर्ष 1964 में इसी गांव सौनियां के तत्कालीन मुखिया बैजनाथ सिंह के द्वारा इस पूजा की शुरुआत की गई थी। उस वक्त माता की पूजा ग्रामीण बड़े उत्साह के साथ कोलकाता के मूर्तिकार द्वारा मिट्टी की मूर्ति बनाकर धूम धाम से किया करते थे। लोगों के पास आर्थिक परेशानी होने के बाद भी ग्रामीण बड़ी धूम धाम के साथ माता की पूजा अर्चना करते थे। ग्रामीणों के अनुसार वर्ष 1980 के आसपास माता काली की रौद्र रूप की पूजा व बलि प्रथा तत्कालीन पुरोहित पंडित राघो बाबा के सुझाव पर बंद कर दिया गया और माता दुर्गा के महिसासुरमर्दिनी की पूजा की शुरुआत की गई। जो अनवरत 2017 तक चलता रहा।

ग्रामीणों के सहयोग से इस स्थल पर मंदिर निर्माण कर संगमरमर की मूर्ति लगाई गई

समय गुजरने के साथ माता की पूजा से चारों गांव के लोगों संपन्नता आ गई। जैसे जैसे माता का भवन बनता गया ग्रामीणों का भी स्थिति परिवर्तन होता गया। लोगों का मानना है कि माता चैती दुर्गा के अनवरत पूजा पाठ से पूरा गांव खुशाल हुआ।आज माता की कृपा से चारो गांव में डॉक्टर, इंजीनियर, प्रतिनिधि, बड़ी संख्या शिक्षक एवं कई बड़े व्यवसाई हैं। जिस वजह से प्रखण्ड में इन गांव का अलग महत्व है। आज इन चारों गांव में माता चौती दुर्गा की कृपा से खुशहाली आई है। ग्रामीण इसे माता की कृपा मानते हैं। ग्रामीणों ने जानकारी दिया कि वर्ष 2017 में तत्कालीन पुरोहित पंडित राघो बाबा के वंशज पंडित उमाशंकर पांडेय के सुझाव के बाद उसी स्थल पर माता दुर्गा समेत गणेश, कार्तिकेय, महालक्ष्मी, सरस्वती एवं बजरंगबली का संगमरमर की मूर्ति स्थापित कर मंदिर का रूप दे दिया। आज उसी स्थल पर प्रत्येक दिन माता की पूजा विधि विधान से की जाती है।

1964 से हो रहा है नाटक का मंचन

वर्ष 1964 में माता दुर्गा की पूजा के साथ-साथ चार गांव के ग्रामीणों द्वारा कौशल विकास व मनोरंजन को लेकर नाटक मंचन की शुरुआत की गई थी। उस जमाने मे नाटक का ऐसा क्रेज था कि लोग सैकड़ो किलामीटर दूरी तय कर नाटक का लुत्फ उठाते थे। आज भी नाटक की परिपाटी यहां चली आ रही है। इस इलेट्रॉनिक युग मे यहां के लोग नए तकनीक का इस्तेमाल कर आज भी नाटक का मंचन करते हैं। आज भी प्रखण्ड के लोग बड़ी उत्सुकता से नाटक का लुत्फ उठाते हैं। अष्टमी नवमी एवं दशमी तिथि को ग्रामीण कलाकारों द्वारा सामाजिक व क्रांतिकारी नाटक का मंजन बड़ी भव्यता के साथ किया जाता है। जिसे देखने के लिए प्रखंड घर से लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।

चैत्र नवरात्र को उत्सव की तरह मानतेन हैं गांव के लोग

चैत्र नवरात्र आते ही सौनीयां , बलिया एरकी एवं सिलार गांव के ग्रामीण इसे उत्सव की तरह मानते हैं। यहां के जो नौजवान बाहर काम करने हैं वे समय निकालकर इस नवरात्र में पहुंचाना नहीं भूलते। चौत्र नवरात्र के विजयदशमी को यहां मेला का आयोजन होता है। जिससे आस पास के लोग मेला का आनंद उठाते हैं। साथ ही विभिन्न प्रकार के दुकान लगाया जाता है।

भद्रकाली मंदिर पहुंचने वाले पर्यटक यहां भी करते हैं माता का दर्शन

प्रसिद्ध तीर्थ स्थल माता भद्रकाली मंदिर पहुंचने वाले बाहरी पर्यटक यहां भी पहुंचकर माता की पूजा अर्चना करते हैं। आये दिन पर्यटकों से यह स्थल गुलजार रहता है। शादी का लग्न मुहर्त पर क्षेत्र के लोग चैती दुर्गा मंदिर में बड़ी आसानी से विवाह कार्य सम्पन्न करवाते हैं।

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