By न्यूज स्केल/मुन्ना कुमार | छठ पूजा 2025 की शुरुआत 25 नवंबर को नहाय-खाय से होगी। व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखेंगी। जानिए क्यों इस दिन कद्दू-भात का सेवन जरूरी माना जाता है और इसके पीछे क्या है धार्मिक व वैज्ञानिक कारण।
🌅 नहाय-खाय से हुई छठ महापर्व की शुरुआत
लोक आस्था और सूर्योपासना का महापर्व छठ पूजा 2025 आज नहाय-खाय के साथ आरंभ हो गया। व्रती स्नान कर घर की शुद्धि करने के बाद भगवान सूर्य की आराधना में लीन हो गए।
इस दिन अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी सेंधा नमक के साथ बनाई जाती है। यही प्रसाद ग्रहण कर छठ व्रत की शुरुआत होती है।
🍚 नहाय-खाय के भोजन का महत्व
यह भोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से शुद्ध माना गया है, बल्कि व्रती के शरीर को अगले 36 घंटे के निर्जला उपवास के लिए ऊर्जा और संतुलन प्रदान करता है।
छठ पूजा में सात्विकता, पवित्रता और संयम का विशेष महत्व होता है।
🌾 दूसरा दिन — खरना: तपस्या की शुरुआत
छठ का दूसरा दिन खरना कहलाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन अन्न-जल त्याग कर शाम को गुड़ की खीर, दूध और रोटी का प्रसाद बनाते हैं।
भोग लगाने के बाद व्रती यही प्रसाद ग्रहण करते हैं और इसके साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ हो जाता है।
🌇 तीसरा दिन — संध्या अर्घ्य
तीसरे दिन घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है।
व्रती परिवार सहित डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और ठेकुआ, फल तथा अन्य प्रसाद अर्पित करते हैं।
यह दिन व्रत का सबसे कठिन और सबसे भावनात्मक चरण माना जाता है।
🌄 चौथा दिन — उषा अर्घ्य और पारण
छठ के अंतिम दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
व्रती अपने परिवार और समाज की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
इसके बाद पारण कर छठ व्रत का समापन होता है।
🎃 कद्दू खाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
🔸 धार्मिक दृष्टि से
नहाय-खाय के दिन कद्दू-भात का सेवन परंपरागत रूप से आवश्यक माना गया है।
कद्दू को सात्विक, शुद्ध और सूर्यदेव को प्रिय फल माना जाता है।
यह शरीर और मन को पवित्र बनाए रखने का प्रतीक भी है।
🔸 वैज्ञानिक दृष्टि से
कद्दू में पानी की मात्रा अधिक होती है, जिससे व्रती के शरीर में हाइड्रेशन बना रहता है।
इसमें पाए जाने वाले विटामिन A, C और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।
कद्दू हल्का, सुपाच्य और एनर्जी बूस्टर भोजन है — जो लंबे निर्जला उपवास में शरीर को थकान से बचाता है।
🌸 छठ महापर्व — आस्था, अनुशासन और प्रकृति का संगम
छठ पर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह आत्मसंयम, शुद्धता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।
चार दिनों तक चलने वाला यह व्रत मन, वचन और कर्म की पवित्रता का सजीव उदाहरण है।








