
हिमांशु सिंह
मयूरहंड(चतरा)। शिक्षा की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए बेशक काफी प्रयास हो रहे हैं। स्कूलों में गुणवत्ता शिक्षा पर जोर देते हुए बच्चों की उपस्थिति को अनिवार्य किया जा रहा है। शिक्षकों के अटेंडेंस पर नजर रखी जा रही है और इस आधार पर स्कूलों को ग्रेडिंग भी दी जा रही है। लेकिन जिम्मेवार शिक्षा में कम और एमडीएम तथा भवन के निपाई-पुताई में अधिक रूचि ले रहे हैं। वे जितना पढ़ाई पर नहीं ध्यान देते उससे कहीं अधिक उनकी नजर विद्यालयों में चलने वाली सरकारी योजनाओं पर रहती है। इसके लिए शिक्षकों पर नजर रखने वाले सरकारी हुक्मरान भी कम दोषी नहीं है। कुल मिलाकर कहा जाये तो आज सरकारी शिक्षा व्यवस्था बदहाल हो चुकी है और उसकी साख पर सवाल उठने लगे हैं। मयूरहंड प्रखंड के प्लस 2 विद्यालयों में संसाधन की घोर कर्मी है। एक भी शिक्षक नहीं होने से छात्रों का कोर्स पूरा नहीं हो पाता। दूसरी तरफ इन सबसे अलग गुणवत्ता के दिखावे पर निजी शिक्षा का कारोबार फलफूल रहा है। निश्चित तौर पर सरकारी से बेहतर सुविधाएं व शिक्षा का माहौल भी वहां लोगों को मिल रहा है। तभी तो सरकारी हुक्मरानों के बच्चों को भी निजी स्कूलों में ही शिक्षा ग्रहण करते हुए पाया जाता है। सबसे अहम कि वहां दो हजार पाने वाले शिक्षक बच्चों को जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देते हैं। जबकी सरकारी स्कूलों के तीस से चालीस हजार पाने वाले शिक्षक नहीं दे पा रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या शिक्षकों का सामंजन सही तरीके से नहीं होने की है। स्थिति यह है कि किसी स्कूल में एक ही शिक्षक हैं तो कहीं छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या काफी अधिक है। इसमें जरूरत है सही सामंजन की।
स्कूलों में पढ़ाई कम राजनीति ज्यादा
शिक्षा में गिरावट के लिए शिक्षकों की राजनीति भी कम दोषी नहीं है।क्षेत्र के लोगों का कहना है कि आजकल सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई कम और राजनीति ज्यादा हो रही है। चौदह गुटों में बंटे शिक्षकों में कभी कोई आंदोलन कर रहा है तो कभी कोई। स्थिति यह हो रही है कि वे अपने कर्तव्य से विमुख हो जा रहे हैं। जिससे शिक्षा प्रभावित हो रही है।