संवाददाता, पारस कुमार इंद्र गुरु
लोहरदगा: दीपावली का पर्व नजदीक आते ही लोहरदगा जिले के कुम्हार परिवारों के घरों में फिर से खुशहाली लौट आई है। परंपरागत मिट्टी के दीयों की बढ़ती मांग ने वर्षों पुरानी इस कला में नई जान डाल दी है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में इन दिनों चाक की घर्र-घर्र आवाज और मिट्टी की सौंधी खुशबू से गलियां महक रही हैं। सहेदा पतराटोली की सुमित्रा देवी ने बताया कि उन्होंने इस बार लगभग 30 हजार दीये तैयार किए, जिन्हें रांची बाजार के व्यापारी उनके घर से ही खरीदकर ले गए। वहीं गोपाल प्रजापति ने करीब 80 हजार दीये बनाए, जिनकी पूरी खेप रांची के थोक व्यापारियों ने खरीद ली। दो अन्य परिवारों ने भी 80 से 90 हजार दीयों की बिक्री की है। कुछ दीये लोहरदगा के स्थानीय दुकानदारों को भी सप्लाई किए गए हैं।
शहर में भी यह परंपरा जीवित है। पावरगंज स्थित कुमार मोहल्ला में सूर्यदेव प्रजापति, संजय प्रजापति और रामदेव प्रजापति बड़े उत्साह से दीया निर्माण कर रहे हैं। वहीं सरना टोली में मुसको प्रजापति, शिवचरण प्रजापति, जगत प्रजापति, रवि प्रजापति और भदड़ प्रजापति दिन-रात जुटे हैं। थाना टोली में करू, राजू, सचिन और प्रवीण प्रजापति, जबकि गड़ा टोली (ललित नारायण स्टेडियम के सामने) में ट्रस्ट के महासचिव नागेंद्र प्रजापति बड़े पैमाने पर दीया उत्पादन कर रहे हैं। नागेंद्र प्रजापति ने बताया—“इस बार मिट्टी के दीयों की मांग रांची और लोहरदगा दोनों जगह से बढ़ी है। एक परिवार औसतन 40 से 50 हजार रुपये तक की कमाई कर रहा है। इससे कारीगरों के चेहरे पर फिर से मुस्कान लौटी है।” व्यापारियों का कहना है कि इस वर्ष मिट्टी के दीयों की बिक्री में करीब 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है और ग्रामीण हस्तशिल्प को बाजार में नई पहचान मिली है। सुमित्रा देवी मुस्कराते हुए कहती हैं, “अब लोग फिर से देशी दीये खरीद रहे हैं। हमारी मेहनत का मूल्य मिल रहा है, यही हमारे लिए असली दीपावली है।”