शिक्षक भर्ती घोटाले के अरोपी पार्थ चटर्जी को एससी से मिली बेल

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नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले के अरोपी पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े इस मामले में कोर्ट ने उन्हें बेल देते हुए रिहा करने का आदेश दिया है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि 31 दिसंबर, 2024 तक चटर्जी के खिलाफ आरोप तय किए जाएं और उनका केस तेजी से सुना जाए। इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा है कि 1 फरवरी, 2025 या उससे पहले उन्हें जमानत मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने 4 दिसंबर को मामले की सुनवाई की थी और इस दौरान चटर्जी के वकील से जमानत पर बात की। कोर्ट ने कहा कि जमानत के सामान्य सिद्धांतों के आधार पर विचार करते हुए, पार्थ चटर्जी को जेल में रखे जाने का कोई औचित्य नहीं है। अदालत ने कहा कि आरोपों के मामले में विचाराधीन कैदी को हिरासत में नहीं रखा जा सकता है और इसे लेकर कोर्ट ने संबंधित प्रावधानों की भी चर्चा की। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह शीतकालीन छुट्टियों के शुरू होने से पहले या 30 दिसंबर तक आरोप तय करने की प्रक्रिया को पूरा करें। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी गवाहों के बयान की जांच की जाए और आरोप तय होने के बाद अपीलकर्ता को पूरी सहायता दी जाए।

पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका को पहले 30 अप्रैल 2024 को कोलकाता हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। 4 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने जमानत देने के सवाल पर विचार करते हुए यह कहा कि पहले तो यह देखना जरूरी है कि क्या जमानत देने से जांच में कोई रुकावट आएगी। अदालत ने यह भी पूछा कि करोड़ों रुपए की बरामदगी के बावजूद आरोपी को जमानत कैसे दी जा सकती है, जबकि यह भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है।

पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी की सरकार ने उन्हें शिक्षा मंत्री के पद से हटा दिया। साथ ही, तृणमूल कांग्रेस टीएमसी ने भी उन्हें पार्टी के महासचिव समेत सभी पदों से मुक्त कर दिया था। यह कदम इस घोटाले के सामने आने के बाद लिया गया था, जो राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में एक बड़ा विवाद बन चुका है।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पार्थ चटर्जी के लिए राहत लेकर आया है, लेकिन यह साफ है कि उनका मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है और आरोपों का सामना करना होगा। कोर्ट ने जिस तरह से सुनवाई तेज करने और जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं, उससे यह संकेत मिलता है कि इस मामले में त्वरित और प्रभावी न्याय के लिए कोर्ट गंभीर है।