
मयूरहंड(चतरा) अब पछतावे क्या होय, जब चिड़िया चुग गई खेत। यह कहावत सिमरिया विधानसभा क्षेत्र की जनता पर स्टिक बैठती है। चुनाव आते हीं, जात पात के चक्कर में विकास का मुद्दा गौन होता रहा है यहां। जो भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। सिमरिया विधानसभा 26 अजा के लिए आरक्षित है। बावजूद क्षेत्र की जनसमस्याओं को दरकिनार कर लोग जाती में बटकर पांच वर्षों के लिए सुनहरा अवसर खो देते हैं। 1977 में बने सिमरिया विधानसभा में आज भी कई मूलभूत सुविधाएं का अभाव है। आज भी क्षेत्र में किसानों के लिए समुचित सिंचाई की व्यवस्था नहीं हो पाई, ना ही किसानों के अन्न भंडारण के लिए कोई सुविधा उपलब्ध हो पाया। आज भी क्षेत्र के किसान वर्षा आधारित खेती करने को मजबूर हैं। जबकि क्षेत्र की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास की बात करना ही बेईमानी होगी। आज भी क्षेत्र में डिग्री कॉलेजों का अभाव है। उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। स्वास्थ्य की बात करें तो प्रखंड के स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टरों के साथ सुविधाओं का घोर अभाव है, करोड़ों के भवन बनाए गए पर सुविधाएं नग्नय। उप स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज होना मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने के बराबर है। जबकि सिमरिया विधानसभा क्षेत्र के टंडवा में काला सोना का उत्खनन कर देश के विभिन्न क्षेत्रों में भेजे जाने के साथ महारत्न कंपनी एनटीपीसी का पावर पलांट भी संचालीत है। लेकिन जनप्रतिनिधियों के उपेक्षित रवैये से इतनी सम्पन्नता वाले विधानसभा क्षेत्र की जनता मूलभूत समस्याओं से जूझ रही है।