कांग्रेस की स्वर्गीय सुमति उरांव के बाद आज तक महिला उम्मीदवार देने में नाकाम रहे हैं राष्ट्रीय राजनीतिक दल

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झारखण्ड/गुमला: विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनीतिक दलों द्वारा जहां गुमला जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र से महिला प्रत्याशी नहीं दी जाती है और ना ही क्षेत्रीय दल भी किसी महिला प्रत्याशी को चुनावी मैदान पर उतारने का काम किया है. इस बार झारखण्ड विधानसभा चुनाव 2024 में झारखण्ड में उभरते युवा नेता जयराम महतो की झारखण्ड लोकतांत्रिक मोर्चा ने गुमला सीट से महिला प्रत्याशी को चांस दे इसकी शुरुआत कम से कम कर दी है। यहां बताते चलें कि कांग्रेस के शासनकाल में लोहरदगा संसदीय क्षेत्र से आदिवासियों के बीच लोकप्रिय सांसद स्वर्गीय कार्तिक उरांव के बाद सुमति उरांव को एवं उसके बाद उनकी बेटी गीताश्री उरांव को जनप्रतिनिधि बनने का मौका मिला था, लेकिन उसके बाद से महिला प्रत्याशी बिल्कुल शुन्य हो गया। इसकी जगह में आधी आबादी जो महिलाएं वोटर्स काफी उलट-फेर करने में मदद करते हैं राजनीतिक दलों को होश आया लेकिन सिर्फ उनके लिए एक एक हजार रुपए की मईया सम्मान योजना की शुरुआत झारखण्ड कर एक बड़ी राजनीतिक शतरंज महिला वोटर्स को लेकर चल पड़ी है वहीं इस महत्वाकांक्षी योजना से आगे बढ़ कर भाजपा ने भी महिला वोटर्स को झारखंड राज्य में यदि भाजपा आई तो 21-21 सौ रुपए प्रति माह देने की घोषणा पत्र जारी कर दी है वहीं उससे घबरा कर पुनः झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो सरकार बनते ही पुनः दिसंबर माह से 2500 रूपया प्रति माह एक हजार को कर देने की घोषणा कर दी है और इस घोषणा को लेकर चले तो महिला मतदाताओं को रिझाने और अपने पक्ष में लाने के लिए ठीक विधानसभा चुनाव 2024 के नजदीक आते-आते की गई है।

यहां बताते चलें कि हर राजनीतिक गणित जानने वाले जान चुके हैं कि भाजपा के पास एक बहुत बड़ा महिलाओं का मत चला गया है और उसे सेंधमारी करते हैं तो फायदा होगा। लेकिन यह कोई भी राजनीतिक दल नहीं सोचते है कि खासकर गुमला जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र गुमला बिशुनपुर सिसई से कोई महिला प्रत्याशी को चांस दे बस कैसे उन्हें थोड़ा सा लाभान्वित कर महिला वोटरों को लुभाने का काम किया जाएं। यहां बताते चलें कि चाहे झामुमो हो या फिर भाजपा कांग्रेस इन सीटों पर महिला सांसद स्वर्गीय सुमति उरांव के बाद महिला को जनप्रतिनिधि बनाने का मौका दिया जाए नही सोचते जबकि जुझारू महिला नेत्रियों की कमी इस आरक्षित सीट जो अनुसूचित जनजाति के लिए है कमी नहीं है। ऐसे में अनेकों महिला नेत्री पार्टी के लिए सिर्फ झंडा लेकर चलने को मजबुर है।