Wednesday, October 30, 2024

तीन दिवसीय इटखोरी महोत्सव के दूसरे दिन इटखोरी के पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व पर संगोष्ठी का आयोजन

न्यूज स्केल संवाददाता

इटखोरी(चतरा)। तीन दिवसीय राजकीय इटखोरी महोत्सव के दूसरे दिन मंगलवार को भद्रकाली मंदिर परिसर में इटखोरी के पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व विषय पर संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके साथ यहां छात्र-छात्राओं के बीच निबंध प्रतियोगिता का भी आयोजन हुआ। इसका उद्घाटन दीप प्रज्वलित कर बौद्ध भिक्षु भंते तिस्सावरो व रांची और हजारीबाग से आए विद्वानों ने किया। इसके बाद कार्यक्रम में शामिल अतिथियों को जिला प्रशासन द्वारा पौधा भेंट किया गया। इससे पूर्व कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय इटखोरी की छात्राओं ने स्वागत गीत गाकर अतिथियों का स्वागत किया।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रांची के अधीक्षण पुरातत्वविद राजेन्द्र देहरी ने कहा कि इतिहास और पुरातत्व दोनों में समानता है। यहां तीनों धर्म से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्राचीन प्रतिमाएं व पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं। खुदाई इसका साक्ष्य हैं। उन्होंने कहा कि खुदाई में प्राप्त अवशेष के बारें में रीसर्च करने की जरूरत हैं। धार्मिक के क्षेत्र में इटखोरी को सजाने व संवारने की जरूरत है। यहां तीनों धर्मों का विरासत कायम है। उन्होंने कहा कि यदि इटखोरी की पहचान नहीं होती तो बोधगया की भी पहचान नहीं होती। आगे उन्होंने भद्रकाली मंदिर और इसके आसपास पुरातात्विक विशेषता के बारे में बारीकी से संबोधन करते हुए इस स्थल को पुरातात्विक स्थल की संज्ञा दी। वहीं विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विवेक आशीष बाखडा ने कहा कि पुरातात्विक कभी झूठ नहीं बोलते। पुरातात्विक चीज बिल्कुल प्रमाणित होती है। पुरातात्विक चीज महायान शाखा से संबंधित है। विस्तार के तौर पर इटखोरी बौद्ध की हीं नहीं जैन धर्म का भी स्थल रहा है और तीनों धर्मो का संगम है। यहां बगैर छेड़छाड़ के सारी चीज देखने को मिलते हैं। विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर एसके पांडेय ने कहा कि जो इटखोरी का पानी पीते हैं, उसको यहीं से ज्ञान प्राप्त होता है। इटखोरी में हीं गौतम बुद्ध आए थे। इटखोरी में कई संस्कृतियों की झलक मिलती है। पुरातत्व के अवशेषों को यहां के लोगों ने हीं तराशा होगा। यह इतिहास का विषय है। प्रोफेसर नीरज मिश्रा ने कहा कि पुरातत्व एवं इतिहास में मूलभूत अंतर है। पुरातात्विक खनन से जो हमें अवशेष प्राप्त होते हैं, वह इसलिए क्लियर करता है, यहां के पुरातात्विक खंड अवशेष खंड को दर्शाते हैं। पाल काल में ज्यादा मूर्तियां काले पत्थर की होती थी। परंतु यहां की मूर्तियां पिंक कलर की है। इसका मतलब समझा जाता है कि यहां की क्षेत्रीय पत्थर से यहां की मूर्तियां निर्मित है। उन्होंने कहा कि हजारीबाग के सोहरा, दैहर मानगढ़ और चतरा के पत्थलगड्डा एवं इटखोरी के विभिन्न गांवों में भी अवशेष प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि दैहर में कमला माता का मंदिर है। लेकिन उस मंदिर में दूर से हीं पूजा की जाती है। मूर्ति में दूध और पानी या प्रसाद चढ़ाने से उसकी सुंदरता खराब हो जाता है। सेमिनार में चतरा जिले के आला अधिकारी की उपस्थिति नदारद रही। यहां कुछ देर के लिए एसी पवन कुमार मंडल और एसडीओ सुरेंद्र उरांव अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके बाद यहां से निकल पड़े। मौके पर भद्रकाली महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर दुलार ठाकुर, श्याम प्रसाद सिंह, समाजसेवी देव कुमार सिंह और 20 सूत्री अध्यक्ष जागेश्वर यादव समेत बड़ी संख्या में भद्रकाली महाविद्यालय और अन्य कॉलेजों के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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