एशिया की सबसे बड़ी मगध-आम्रपाली कोल परियोजना क्षेत्र के रैयत व ग्रामीणों की समस्याओं का नहीं हो रहा समाधान

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परियोजना क्षेत्र में हर माह सीएमडी का होता है दौरा, बावजूद नही होता समाधान

विशेष संवाददाता बिरेंद्र साहु की रिपोर्ट…
चतरा। जिस कोल परियोजना क्षेत्र में प्रत्येक महीने व पखवाड़े सीसीएल के सीएमडी का दौरा होता है। वहीं के रैयत व ग्रामीण बदहाल हैं। क्षेत्र में पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा व अस्पताल की व्यवस्था नहीं हो पाई है। दस वर्ष बाद भी सीसीएल कोयला ढुलाई के लिए ट्रास्पोर्टिंग सड़क भी नही बना पाई। इन दस वर्षाे में एक रैयत को भी पुनर्स्थापित नही किया जा सका। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सीसीएल सीएमडी को ऐसे मुद्दे दिखते नही है या फिर प्रबंधन अधिकारियों द्वारा दिखाए नही जाते ? हम बात कर रहे हैं चतरा जिले के टंडवा थाना क्षेत्र अंतर्गत एशिया की सबसे बड़ी मगध-अम्रपाली कोल परियोजना क्षेत्र की जहां पर सीसीएल के प्रबंध निदेशक प्रत्येक पखवाड़े दौरा कर परियोजना क्षेत्र का स्वयं जानकारी लेते हैं। इसके बावजूद परियोजना क्षेत्र के विस्थापित रैयत ग्रामीण एवं क्षेत्र की स्थिति बदहाल है। मगध कोल परियोजना की नीव मासीलौंग गांव से रखी गई थी। जहां से दो दर्जन से अधिक आदिवासी परिवारों का घर द्वार उजाड़ दिया और कोयले का उत्खनन कर गांव में पहाड़ व गहरे तालाब बना दिया गया। उस वक्त प्रबंधन ने लोगो को नई मासीलौंग बसाने का सपना दिखाया था। लेकिन आज गांव के लोग पानी के लिए तरस रहे है। जो आदिवासी परिवार मिट्टी के घर में खुशहाल रहते थे वे आज एक कमरे में सिसकने को मजबूर है। प्रबंधन कुंडी देवलगड़ा पेच को सुलझा नहीं पाई है देवलगड़ा में महीनो से कार्य ठप है। कुंडी गांव को पुनर्स्थापित नही करा सकी है सीसीएल अधिकारी विस्थापितों के जमीन नहीं ढूंढ पाई है। वही 10 वर्ष बीतने के बाद भी आम्रपाली कोल परियोजना क्षेत्र के मानवा टोंगरी के दो दर्जन दलित परिवारों को पुनर्स्थापित करने में नाकाम रही है प्रबंधन। प्रबंधन इन दलित परिवारों को घर द्वार छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया है घर के चारों तरफ से कोयला का उत्खनन किया जा रहा है। शेष भूमि पर कोयला ढुलाई के लिए ट्रांसपोर्टिंग सड़क बना दिया है। जिससे इन लोगों को जीना मुहाल हो गया है। आज वह खुली सांस भी नहीं ले पाते है। आउटसोर्सिंग कंपनी के प्रतिदिन विस्फोट से हृदय दहल रहा आसपास के लोगों का।