लोकसभा के चुनावी दंगल में प्रत्याशियों को टंडवा में चुभते सवालों से लगातार हो रहा है सामना…

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लोकसभा के चुनावी दंगल में प्रत्याशियों को टंडवा में चुभते सवालों से लगातार हो रहा है सामना…

न्यूज स्केल संवाददात, शशि पांठक
चतरा/टंडवा(शशि पांठक)। टंडवा में संचालित दो केंद्रीय महारत्न कंपनियां एनटीपीसी व सीसीएल परियोजनाओं के कारण औद्योगिक नगरी का लगा तमगा जहां विस्तारवादियों के अनुकूल रहा है। वहीं भू-रैयतों, विस्थापित-प्रभावित परिवारों व क्षेत्रीय कामगारों के शोषण से व्यथित बड़ा तबका कोयले की प्राकृतिक भू-संपदा के कारण ईकाईयों की स्थापना चुभती है व अभिशप्त मानता है। साथ ही जंगलों का विनष्टीकरण, नदियों का संकुचन व मानवीय अधिकारों तथा नैतिक मूल्यों के दमन को जी-भर कोसता है। ऐसी स्थिति को लेकर पीढ़ियों तक पड़ने वाले स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति उनके चेहरे पर चिंताओं की लकीरें साफ़ देखी जा सक ती है। 20 मई को लोकसभा चुनाव 2024 में जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित करने को लेकर जागरूकता हेतु व्यापक प्रचार-प्रसार कराये जा रहे हैं। जिसमें चुनाव आयोग के साथ जनप्रतिनिधियों ने भी अपनी पूरी ताकतें झोंक रखी है। इसबार अपना भाग्य आजमा रहे प्रत्याशियों को खाश कर टंडवा में मतदाताओं के कई चुभते सवालों से सामना करते हुए पसीने छूट रहे हैं। साथ ही सब्जबाग नहीं बल्कि सत्य वादों की मांग क्षेत्र की जनता कर रही है। पिछले चुनाव में बहुमत से भाजपा के सांसद व विधायक को जीताने वाली जनता समस्याओं का अंबार लिये दिखाई देती है। प्रमुख तौर पर कोल वाहनों से दुर्घटनाओं में हुई अप्रत्याशित वृद्धि के बावजूद रोकथाम व मुआवजा नीति की विफलता, स्थानीयों के रोजगारों के अवसरों पर प्रवासियों का कब्ज़ा, एनटीपीसी व सीसीएल के परियोजनाओं से निकलने वाले जहरीले राख व कोयले के धूककणों से हो रहे भारी प्रदूषण व आमजनों के स्वास्थ्य के साथ हो रहे खिलवाड़ के बावजूद जनप्रतिनिधियों के मूकदर्शिता पर सवालिया निशान लगाये जा रहे हैं। लोग जानना चाहते हैं कि आखिर पिछले 10 वर्षों से ग्रामीण सड़कों को कोल वाहनों से अतिक्रमण कर हो रहे कोल परिवहन व सड़क दुर्घटनाओं में अनगिनत मौतों का आखिर जिम्मेदार कौन है? लोग पूछ रहे हैं कि स्थानीय ज्वलंत मुद्दों को दरकिनार कर प्रबंधन का हितैषी बनने वाली पार्टी व प्रत्याशी को लोग वोट क्यों दें? दूसरी ओर राज्य की गठबंधन सरकार व उनके लोकसभा के साझा उम्मीदवार के प्रत्याशी को भी दौरों में सवालों से लगातार दो-चार होना पड़ रहा है। लोग जानना चाहते हैं कि संचालित परियोजनाओं में राज्य सरकार द्वारा 75 प्रतिशत स्थानीय बेरोजगारों के नियोजन नीति की घोषणा आखिर टांय-टांय फुस्स क्यों हो गया?