
तीनो योद्धाओं के बीच परंपरागत वोट बैंक एवं आदिवासी वोटर्स का समुंद्र मंथन करेंगे, भाजपा के समीर उरांव को मोदी की गारंटी, तो सुखदेव भगत को राहुल गांधी की लखटकिया देने का वादा, वहीं चमरा लिंडा अपनी चुनावी रणनीति को लेकर हैं जनता की अदालत में
न्यूज स्केल संवाददात, अजय शर्मा
गुमला(झारखंड)ः तीनों योद्धाओं का अपना-अपना राजनैतिक कैरियर और पहचान है। समीर उरांव एक किसान परिवार से आते हैं और राज्यसभा सांसद के साथ ही अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक का राजनैतिक एवं समाजिक कैरियर रहा है, तो सुखदेव भगत का राजनैतिक कैरियर में आने से पहले सरकारी मुलाजिम यानी प्रशासनिक सेवक रह चुके हैं, सरकारी नौकरी छोड़ राजनीतिक रूप से कांग्रेस में आएं और झारखण्ड प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही लोहरदगा से विधायक भी बनें और राजनीतिक के उच्चें ओहदे पर जाने के लिए भाजपा का दामन थाम लिया था। फिलहाल पुनः कांग्रेस में शामिल हुए। यहां बताते चलें कि सुखदेव भगत सांसद बनने के लिए लोकसभा चुनाव लड़ें थे पर सफलता प्राप्त नहीं हुई थी इस लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में हैं। वहीं झामुमो विधायक चमरा लिंडा आदिवासी छात्र संघ से राजनैतिक कैरियर की शुरुआत करते हुए विधायक से झामुमो के कद्दावर नेता बने और कभी झुके नहीं। इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस झामुमो गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी को टिकट दिया गया, पर झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने इसे नहीं मानते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सामने हैं और अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इसके अलावा चुनावी मैदान में 12 और कुल मिलाकर 15 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। जिनके भाग्य का फैसला 13 मई को ईवीएम में लोकतंत्र के महापर्व पर मतदाताओं द्वारा डाले गए मतों की गणना जब 4 जून को होगी तब मालूम होगा कि किसने बैतरनी पार कर ली है। फिलहाल दावो व अटकलों का दौर जारी है।