मयूरहंड (चतरा)। विकास के दावा करने वालों माननीय को आईना दिखा रहा है चतरा जिले के मयूरहंड प्रखंड के मौना गांव। जहां आज भी ग्रामीणों को पगडंडियों के सहारे आवागमन करना पड़ रहा है। एक तरफ जहां देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। वहीं छोटकी मौना के ग्रामीण सड़क निर्माण के लिए एडि रगड रहे हैं। पंदनि पंचायत के छोटकी मौना में लगभग 40 घर राणा (बड़ही) परिवार के लोग निवास करते हैं। गांव पहुंचने के लिए ग्रामीणों को दो नाला पार करना पड़ता है। गर्मी एवं सर्दी के मौसम में ग्रामीण किसी तरह आवागमन कर तो लेते हैं। परंतु जैसे ही बरसात का मौसम आता है गांव टापू में तब्दील हो जाता है। ग्रामीण बरसात के दिनों में 4 माह का राशन लाकर रख लेते हैं और बरसात खत्म होने का इंतजार करते हैं। सबसे परेशानी ग्रामीणों को तब होती है जब किसी का तबीयत खराब हो या कोई महिला का प्रसव पीड़ा हो। ऐसे में ग्रामीणों के समक्ष डोली के सहारा लेने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह जाता। अक्सर प्रसव वाली महिलाओं को बरसात के दिनों में ग्रामीण अपने रिश्तेदारों के यहां रखने को मजबूर हैं। ताकि सड़क के अभाव में कोई परेशानी ना हो। साथ ही बच्चों की पढ़ाई चार माह बंद हो जाती है। ग्रामीण इंद्रजीत राणा ने बताया कि चुनाव के समय चाहे सांसद हो या विधायक बड़े-बड़े वादे कर हम ग्रामीणों को आशा की किरण तो दिखाते हैं। पर चुनाव जितने के बाद सड़क निर्माण तो दूर हाल चाल भी लेना मुनासिब नहीं समझते। ग्रामीणों ने बताया की गांव पहुंचने वाले रास्ते में थोड़ा सा जमीन वन विभाग का पड़ता है। जिसके कारण आज तक सड़क निर्माण नहीं हो पाया। जब भी हम ग्रामीण आपने निजी खर्च से बनाने का भी प्रयास करते हैं वन विभाग के पदाधिकारी रोक लगा देते हैं। जबकि रास्ते वाले जमीन पर एक भी पौधे लगे नही है और ना ही वन विभाग द्वारा कोई घेराव की गई है। बावजूद वन विभाग के पदाधिकारी रास्ते को बनाने में परेशानी उत्पन्न कर रहे हैं। अगर वन विभाग की अनुमति मिल जाती तो ग्रामीण सरकारी पैसे के जगह अपने निजी पैसे खर्च कर आवागमन लायक सड़क निर्माण कर लेते।
आजादी के बाद से अब तक गांव जाने के लिए सड़क नहीं, पग डांडियों के सहारे करते हैं ग्रामीण आवागमन

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