सरकारी शिक्षा बदहाल, साख पर उठ रहे सवाल, प्लस 2 विद्यालयों में संसाधनों का अभाव, जिम्मेवार एमडीएम तथा भवन निपाई-पुताई में अधिक लेते हैं रूचि

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न्यूज स्केल डेस्क
मयूरहंड(चतरा)। सरकार द्वारा शिक्षा की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए बेशक काफी प्रयास हो रहे हैं। स्कूलों में गुणवत्ता शिक्षा पर जोर देने के साथ, बच्चों की उपस्थिति को अनिवार्य किया जा रहा है। शिक्षकों के अटेंडेंस पर नजर रखी जा रही है और इसी आधार पर स्कूलों को ग्रेडिंग भी दी जा रही है। लेकिन सबसे अहम यह कि जिनके ऊपर इन सभी का दारोमदार है, वे शिक्षा में कम और एमडीएम तथा भवन निपाई-पुताई में अधिक रूचि ले रहे हैं। वे जितना पढ़ाई पर नहीं ध्यान देते उससे कहीं अधिक उनकी नजर विद्यालयों में चलने वाली सरकारी योजनाओं पर रहती है। इसके लिए शिक्षकों पर नजर रखने वाले सरकारी हुक्मरान भी कम दोषी नहीं है। ऐसे में आज सरकारी शिक्षा व्यवस्था बदहाल हो चुकी है और उसकी साख पर सवाल उठने लगे हैं। प्रखंड में प्लस 2 विद्यालयों की बात करें तो यहां संसाधन का रोड़ा सबसे बड़ी मुसीबत है। विषयवार शिक्षक नहीं होने से छात्रों का कोर्स पूरा नहीं हो पाता। दूसरी तरफ इन सबसे अलग गुणवत्ता के दिखावे पर निजी शिक्षा का कारोबार फलफूल रहा है। निश्चित तौर पर सरकारी से बेहतर सुविधा व शिक्षा का माहौल भी वहां लोगों को मिल रहा है। तभी तो सरकारी हुक्मरानों के बच्चों को भी निजी स्कूलों में ही शिक्षा ग्रहण करते हुए पाया जाता है। सबसे अहम कि वहां दो हजार पाने वाले शिक्षक बच्चों को जो गुणवत्ता देते हैं, वह सरकारी स्कूलों के तीस से 60 हजार पाने वाले शिक्षक भी नहीं दे पा रहे हैं। शिक्षकों की कमी से स्कूलें तो जूझ ही रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या शिक्षकों का सामंजन सही तरीके से नहीं होने की है। स्थिति यह है कि किसी स्कूल में एक शिक्षक हैं, तो कहीं छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या काफी अधिक है।

स्कूलों में पढ़ाई कम राजनीति ज्यादा

शिक्षा में गिरावट के लिए शिक्षकों की राजनीति भी कम दोषी नहीं है। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि आजकल सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई कम और राजनीति ज्यादा हो रही है। चौदह गुटों में बंटे शिक्षकों में कभी कोई आंदोलन कर रहा है तो कभी कोई। स्थिति यह हो रही है कि वे अपने कर्तव्य से विमुख हो जा रहे हैं। जिससे शिक्षा प्रभावित हो रही है। सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की बात करें तो इसके लिए निजी स्कूलों की तरह सरकारी स्कूलों में भी सिस्टम विकसित करना होगा। यही नहीं शिक्षकों को एमडीएम से अलग करने के साथ भवन निपाई-पुताई जैसे कार्य से भी मुक्ति देनी होगी। शिक्षक जब केवल शिक्षण कार्य के लिए ही विद्यालय में रह जायेंगे तो निश्चित तौर पर उनका ध्यान शिक्षा के प्रति जायेगा और वे बच्चों को उचित शिक्षा देंगे।