न्यूज स्केल संवाददाता
मयूरहंड(चतरा)। सरकारी स्तर पर लाख दावा किया जाय, मगर आदिम जनजाति आज भी अपने उत्थान के लिए संघर्ष कर रही हैं। मयूरहंड प्रखंड मुख्यालय से महज 10 किमी दूर करमा पंचायत के करमा बिरहोर टोला में निवास करने वाले आदिम जनजाति आजादी दशकों के बाद भी आज मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। गरीबी व बदहाली के आलम में गुजर कर रहे करमा टोला के आदिम जनजाति के लोगों के बीच समुचित रूप से सड़क, बिजली, पानी व स्वास्थ्; जैसी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है। करीब 25 घर की सौ की आबादी वाले इस टोले की विकास का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इतनी बड़ी आबादी में महज एक चापाकल है। उसमें जल मीनार पीएचडी विभाग द्वारा लगाया भी गया था जो हाथि दांत साबित हो रहा है। इतनी गुणवत्ता पूर्ण लगा कि महज एक वर्ष के अंदर अपना दम तोड़ दिया। आज केवल शोभा की वस्तु भर रह गया है। टोला तक पहुंचने के लिए पक्की या कच्ची सड़क तक नहीं है। रोजगार का तो पहले से ही टोटा लगा है। आदिम जनजाति के लोग जंगल पर निर्भर हैं। सीधे-साधे सरल स्वभाव के ये आदिम जनजाति के लोग बेरोजगारी व गरीबी के आलम में महिला पुरुष लकड़ी एवं दातुन बेच कर गुजर करते हैं। शिक्षा की अभाव शुरू से ही रहा है, टोला में आंगनबाड़ी के साथ प्राथमिक विद्यालय तो है पर बच्चे जाते नहीं हैं। जागरूकता के अभाव में यहां के बच्चे पठन-पाठन का समुचित लाभ नहीं उठा पाते। टोला के लोग मुखर होकर अपनी हक व अधिकार की मांग भी नहीं कर पाते। इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज तक टोला में किसी को प्रधानमंत्री आवास नहीं मिला है। लगभग आदिम जनजाति कच्चे व जर्जर मकान में रहने को विवश हैं। वहीं आज भी कुछ लोग सरकारी पेंशन से दूर है।