मयूरहंड (चतरा)। जिले के मयूरहंड प्रखंड अंतर्गत करमा में लगभग चालीस घर आदिम जनजाति (बिरहोर) परिवार निवास करते हैं। जिनके बच्चे आज भी शिक्षा से वंचित रह रहे हैं। जिसका सारा श्रेय बाल विकास परियोजना विभाग एवं अन्य संबंधित सरकारी महकमे को जाता है। सरकारी महकमे द्वारा दिखावे के लिए बिरहोर टोला में आंगनबाड़ी केंद्र के अलावा प्राथमिक विद्यालय खोला तो गया है। बावजूद बिरहोर परिवार के बच्चे शिक्षा से कोसों दूर हैं। आंगनबाड़ी केंद्र की स्थिति ऐसी बनी हुई है कि देखने से ही प्रतित होता है कि महिने में एकाध बार खुलता होगा। परंतु इस पर ना ही विभाग गंभीर है और ना ही प्रखंड विकास पदाधिकारी से लेकर जिले के उपयुक्त, जिसका खमियाजा आदिम जनजाति परिवार को झेलना पड़ रहा है। जबकि आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने से लेकर कुपोषण से बचाव के लिए सरकार द्वारा पोषाहार उपलब्ध कराया जाता है। लेकिन विभाग की निरंकुशता के कारण शिक्षा के साथ पोषाहार से भी बिरहोर बच्चे वंचित हो रहे हैं। सरकार के आदेशानुसार उपयुक्त के निर्देश पर कुछ माह पूर्व दिखावे के लिए ऐक्शन प्लान के तहत दर्जनों मर्तबा शिविर आयोजित किया गया था। उस समय लगा कि लगता है अब बिरहोर परिवारों का काया कल्प होगा। परंतु जमीनी हकीकत है कि दो चार आवास, राशनकार्ड, आयुष्मान कार्ड उपलब्ध कराने भर ही सीमित रह गया। आज भी बिरहोर टोला में गंदगी के अंबार के साथ अन्य बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। अगर सरकारी महकमे का यही रवैया रहा तो केवल कागजों पर ही आदिम जनजाति के विकास की गाथा लिखी जाएगी।