झारखंड का ऐसा गांव जहां लोग रिश्ता करने से कतराते हैं, वजह आपको कर देगी हैरान व परेशान, यही नही गांव का युवक सरहद की सुरक्षा में है लगा, फीर भी ऐसी स्थिति
चतरा। झारखंड का एक ऐसा गांव जहां लोग रिश्ता करने से कतराते हैं, आखिर क्या वजह है की लोग गांव के नाम सुनते ही रिश्ता करने से मना कर जाते हैं। स्थित ऐसी की जब गांव के किसी लड़की की शादी तय हो जाती है, तब बारात को घर तक बुलाने के लिए यहां के ग्रामीण खुद से सड़क बनाया करते हैं, यह एक बार की बात नहीं है हर वर्ष सड़क बना कर अपनी बेटियों को विदा करते हैं यहां के लोग। ताजुब की बात यह है कि आज तक प्रखंड विकास पदाधिकारी के गांव में पैर नहीं पड़े हैं। यही वजह है कि आजादी के वर्षों बाद भी लोग पगडंडियों के सहारे अपन मंजील तय करते हैं। मूलभूत सुविधाओं की बात हो तो उसमें प्रमुखता से सड़क का नाम सबसे ऊपर आता है, लेकिन सरकार के दावे और इरादे मानो यहां कागजों तक ही सिमट कर रह गई हो। भारत को आजाद हुए 79 वर्ष होने को है, लेकिन आज भी यहां के ग्रामीण पगडंडियों के सहारे आवागमन करते हैं। इस रास्ते से चलना मानो युद्ध लड़ने जैसा लगता है और यह जोखिम भरे रास्ते आपको 60 के दशक की याद दिलाती हैं।
ऐसे तो झारखंड का चतरा जिला नक्सल प्रभावित क्षेत्रीय के रूप में जाना जाता है। लेकिन इस नाम को चार चांद लगाने में अधिकारी भी सहयोग कर रहे हैं। ऐसा इस लिए कि हंटरगंज प्रखंड के जोरी थाना अंतर्गत करैलीबार पंचायत के मानामात गांव को आज तक प्रखंड मुख्यालय से सड़क के माध्यम से नहीं जोड़ा गया है।
एक तरफ 2022 में आजादी के 75 वर्ष पर अमृत वर्ष मनाया। मानो भारत अमृत काल में चला गया हो, लेकिन आज भी गांव की सड़कों की बदहाली देखकर ऐसा लगता है। सरकारी वादे और इरादे सिर्फ कागजों तक ही सिमट कर रह जाती हैं। एक तरफ धरती से लोग मंगल ग्रह जाने की बात कहते हैं और लोग चंद्रमा तक पहुंच गए हैं। वैसे में आज भी मानामात गांव के ग्रामीण अपने प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचने के लिए मसक्कत करते हैं।
मांझी द माउंटेन मैन फिल्म का नाम आते ही लोगों के मन में एक व्यक्ति की पीड़ा सामने आती है। जो अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद एक पहाड़ को काटकर रास्ता बना देता है। जिसे दशरथ मांझी के नाम से जाना जाता है। यह घटना 1960 की है। 2015 में इस घटना को फिल्माया गया। इस तरह की घटना सिर्फ एक घटना नहीं, अनेकों ऐसे जगह हैं जहां के ग्रामीण आज भी आने-जाने के लिए जादोजहद करते हैं। कभी-कभी इस तरह की घटनाएं खबरों के माध्यम से जानने को मिलते रहते हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि चुनाव के समय इस गांव में प्रत्याशी वोट मांगने आया करते हैं और विधायक बनने के बाद सबसे पहले इसी गांव में कासम करने की बात कहते हैं। पूर्व विधायक सत्यानंद भोक्ता दो-दो बार मंत्री रह चुके हैं। वह भी उक्त बात को दोहरा चुके हैं, लेकिन गांव का कायाकल्प नहीं करवा पाए। अब विधायक जनार्दन पासवान भी दोहरा चुके हैं, अब देखना होगा कि श्री पसवान कब सड़क बनवाते हैं।
इस गांव में रिश्ता जोड़ने से भी लोग कतराते हैं, ग्रामीण बताते हैं कि रिश्ते की बात करते समय हम लोग अपने गांव का नाम बताने से बचते हैं। क्योंकी गांव का नाम सुनते ही कुटुम भाग जाते हैं या कहे की रिश्ता जोड़ने से मना कर देते हैं। ऐसे में शादी के लिए झूठ बोलना पड़ता है।
इस गांव का बेटा इंडियन नेवी में कार्यरत है और सरहद की रक्षा में लगा है। लेकिन उनके गांव की स्थित ऐसी है, तो जरा सोचिए जहां पर आदिवासी वर्ग के लोग रहा करते हैं और नौकरी पैसा से तालुक नहीं रखते हैं उन गांव की क्या दुर्दशा होगी। प्रभु महतो बताते हैं कि मेरा बेटा इंडियन नेवी में है इसका मुझे गर्व है। पर सरहदों के रक्षा में लगे जवान के गांव के लोगों को आवागमन के लिए काफी जद्दो जहद करनी पड़ती है।
यह सड़क एक गांव ही नहीं बल्कि कोल्हुआ, दारी, सालगी, गोराडीह, शिकारपुर, सजनी, मानामात को इसी रास्ते आना-जाना पड़ता है। सरकार मानो गूंगी बहरी बनकर बैठी हुई है यहां के स्थानीय विधायक भी इन गांव पर ध्यान नहीं दिया करते हैं। चुनावी समय आते ही वादे तो कर जाते हैं लेकिन वादे सिर्फ वादे ही रह जाते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि अगर हमारी बातें सरकार नहीं सुनती है तो हम लोग अब उग्र आंदोलन पर उतर जाएंगे।