न्यूज स्केल संवाददाता
चतरा/इटखोरी। चतरा जिले के ऐतिहासिक धार्मिक नगरी इटखोरी प्रखंड मुख्यालय स्थित माता भद्रकाली मंदिर की पावन भूमि सदियों से ऋषि, मुनियों व राजा-महाराजाओं की तपोभूमि रही है। हर वर्ष के भांती इस वर्ष भी शारदीय नवरात्रा को लेकर माता के नव स्वरूपों के अराधाना को लेकर मंदिर परिसर में कलश स्थापित कर पूजा अर्चना की जा रही है। दुसरी ओर माता के दरबार में कोई फलाहार तो कोई निराहार रहते हुए अलग-अलग कलश स्थापित कर श्रद्धालु माता की उपासना में लगे हैं। लोगों की माने तो काफि प्राचीन है भुदली में माता भगवती की अराधना, यहां दिव्य शक्तियों, अध्यात्मिक भावनाओं को जागृत करने के साथ मनवांछित फलों की प्राप्ति के लिए नवरात्र करने श्रद्धालु पहुंचते हैं। वहीं मान्यता है कि इस पावन धरती में नवरात्र करने वाले श्रद्वालुओं की माता सर्वस्व भर देती हैं। यहां मां से सीधे संवाद करने का मौका साधकों को मिलता है। बुजुर्ग ब्राहमणों का कहना है कि राजा सुरत जब भवन नामक राजा से लड़ाई में राजपाट सब कुछ हार चुके थे, तब राजा सुरत ने माता भद्रकाली की यहां साधना की और खोया राजपाट वैभव हासिल किया था। यही नही भगवान बुद्ध बुद्धत्व प्राप्ति से पूर्व जिन जगहों पर तपस्या कि थी उनमे से भदुली एक है। ऐसे में यहां विभिन्न पर्वाे में अनुष्ठान, यज्ञ व नवरात्र करने की प्ररंपरा सदियों पुरानी है। साथ ही बताया जाता है कि बंगाल के राजा महेन्द्र पाल द्वितीय ने नौवी-दसवीं शताब्दी के बिच भदुली में माता की प्रतिमा स्थापित की थी, उस वक्त से लेकर माता के भक्त उपासना करने यहां आ रहे है। भदुली में राजा महेन्द्र पाल द्वारा माता भद्रकाली के अलावा अष्टभुजा मां दुर्गा की भी एक प्रतिमा स्थापित की गई थी। लेकिन 1968 में माता भद्रकाली के साथ अष्टभुजी माता की प्रतिमा चोरी हो गई थी। हालांकि माता भद्रकाली की प्रतिमा को कोलकाता से बरामद किया गया, परन्तु माता अष्टभुजा की प्रतिमा आज तक नहीं मिली। कालान्तर में मेघा मुनी की भी भदुली साधना स्थली रही है।
भदुली की धरती पर साधकों का जमावड़ा, कोई फलाहार, तो कोई निराहार माता के उपासना में लीन
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