न्यूज स्केल संवाददाता
चतराः होली पर्व के मौके पर बजने वाले पारंपरीक बाध यंत्र ढोल, मंजीरा व झाल के मधुर अवाज इस आधुनिकता के युग में गुम हो चुकी है। अब इसका स्थान डीजिटल साउड (डीजे) ने ले लिया है। डीजे के अवाज के आगे ढोल, मंजीरा व झाल की अवाज पूर्ण रुपेण कुंद हो चुकी है। वैसे तो होली के मौके पर पहले उक्त पौरानीक वाद्य यंत्रों का काफी महत्व हुआ करता था और ग्रामीण क्षेत्र के लोग होली के एक पखवारे के पहले से ही इससे मनोरंजन किया करते थे। गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि आज की होली और पहले की होली में काफि अतंर है। अब होली भाईचारगी का नही देश का पर्व मात्र बनकर रह गया है। पहले गांवों में झुमटा का आयोजन किया जाता था। जिसमें गांव के सारे बडे-छोटे भाग लिया करते थे। परन्तु यह सभी बीते जमाने की बातें व कहानी बन कर रह गई हैं। यहां तक की रंग व गुलाल लगाने से भी लोग अब कतराने लगे हैं। इसका कारण मिलवाटी रंग व रिस्ते भी कुछ हद तक हैं।
डीजे के धुन में गुम हो गई मंजीरे की अवाज
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