उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ छठ महापर्व
लोहरदगा। छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान के चौथे व अंतिम दिन चैत्र शुक्ल सप्तमी यानी शुक्रवार की सुबह में उदयगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया गया। इसके साथ ही चार दिनी अनुष्ठान संपन्न हो गया। अर्घ्यदान को लेकर नदी, पोखर व तालाब में जाकर व्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित किया। व्रती व उनके स्वजन उदयगामी सूर्य की पूजा अर्चना करने के बाद आंगन एवं छत पर मिट्टी के कोशी को छठी के रूप में पूजा किए। इसके साथ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास खत्म हो गया और वे पारण किये। व्रती महिला -पुरुष ने स्नान -ध्यान कर पीला व लाल वस्त्र धारण कर पूरी पवित्रता के साथ हाथों में बांस की कलसूप में ऋतुफल ठेकुआ, ईख, नारियल,कला रखकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दान किया। भविष्य पुराण के अनुसार छठ पर्व लौकिक व परलौकिक दोनों ही जीवन को सुख देने वाला है। कहते हैं कि इस पर्व से मृत्यु के बाद भी सूर्य लोक में स्थान प्राप्त होता है और वहां जीवात्मा को सुख की प्राप्ति होती है। परिवार की सुख-समृद्धि तथा कष्टों के निवारण के लिए किये जाने वाले इस व्रत की एक खासियत यह भी है कि इस पर्व को करने के लिए किसी पुरोहित (पंडित) की आवश्यकता नहीं होती है और न ही मंत्रोचारण की कोई जरूरत है। छठ पर्व में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। छठी मैया ब्रह्मा की मानस पुत्री और षष्ठी तिथि की स्वामिनी हैं। भगवान सूर्य की बहन होने के नाते षष्ठी तिथि को छठी मैया के साथ सूर्य देव की भी पूजा-अर्चना की जाती है।

ऐसी मान्यता है कि मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम भी छठ का व्रत रखा करते थे। सूर्य देव उनके कुल देवता थे। श्रीराम शुक्ल षष्ठी तिथि को माता सीता के साथ अस्त होते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर यह व्रत किया करते थे। वहीं पांडवों ने भी इंद्रप्रस्थ में द्रोपदी के साथ भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर षष्ठी व्रत किया था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार छठ पर्व का आरंभ सतयुग में हो चुका था। उस समय पृथ्वी पर स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत का राज था। लंबे इंतजार के बाद उनके घर संतान का जन्म हुआ। लेकिन देवयोग से वह संतान मृत पैदा हुई थी। प्रियव्रत दुखी मन से उस संतान का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे। तभी दिव्य आभा के साथ षष्ठी देवी का प्रकाट्य हुआ। उन्होंने प्रियव्रत के संतान को नवजीवन प्रदान किया और साथ ही छठ व्रत करने को कहा। फिर राजा ने अपनी प्रजा के साथ सूर्य षष्ठी व्रत को किया। लोक आस्था का पर्व छठ कृषि से जुड़ा हुआ है। कार्तिक व चैत मास में यह पर्व तब मनाया जाता है जब नई फसलें कट कर किसानों के घर आ जाती है। अनाज से घर भरने को किसान सूर्य देव की कृपा मानते हैं। अन्न-धन से जब घर भर जाते हैं तो किसान परिवार सूर्य भगवान व उनकी बहन छठी मैया का आभार प्रकट करने को छठ पर्व मनाते हैं। छठी मैया ब्रह्मा की मानस पुत्री और षष्ठी तिथि की स्वामिनी हैं। भगवान सूर्य की बहन होने के नाते षष्ठी तिथि को छठी मैया के साथ सूर्य देव की भी पूजा-अर्चना की जाती है।